Archive for अक्टूबर 19, 2007

अकेलापन

अकेलापन एक ऐसा एहसास जो हर इंसान कभी न कभी ज़रूर महसूस करता है। हर एहसास की तरह इसके भी दो पहलू हैं। पहला नकारत्मक और दूसरा सकारात्मक। हालांकि इसके नकारात्मक पहलू को ही अधिकतर प्रसारित किया जाता है और इसका सकारात्मक पक्ष गुमनामियों के वीराने में कहीं गुम हो जाता है। पर इसके सकारात्मक पहलू का एहसास इंसान को अपने जीवन के अंतिम क्षणों मे होता है जब वह अपने और अपने भूत की स्मृतियों का स्मरण करता है। सबसे पहले इसके नकारत्मक पक्ष पर प्रकाश डालें तो वह मानव जीवन पर बहुत गहरा और प्रतिकूल प्रभाव डालता है। ऐसा इसलिए होता है क्यों कि मनोविज्ञान की दृष्टि से जब इंसान अकेला होता है तो उसका अवचेतन मन अधिक सक्रीय होता है और उस समय जो भिइ विचार हमारे मस्तिष्क मे आते हैं वे अपना प्रभाव गहरा और एक लम्बे अंतराल के लिए छोड़ते है। और यदि ऐसे समय में इंसान यदि निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है तो बहुत थोड़े समय में ही अवसाद का शिकार हो जाता है। विश्व की लगभग सभी आत्महत्याओं के पीछे इसी अकेलेपन का ही योगदान रहा है। हालंकि कुछ लोग इस अकेलेपन को दूर करने के लिए मादक पदार्थों का सेवन भी करते हैं परंतु ये मादक पदार्थ इस अकेलेपन और अवसाद की अवस्था से निकालने की अपेक्षा व्यक्ति को इस अवसाद की दल-दल में और गहरा धकेल देते हैं जो उन्हे ऐसे कदम उठाने के लिए उत्तेजित कर देते हैं जिनकी साधारण परिस्थितियों मे उन लोगों से अपेक्षा नहीं की जा सकती।

                                                 अब यदि इस अकेलेपन के सकारत्मक पक्ष की बात करे तो इस संसार में जितना भी सृजन हुआ है वह इसी अकेलेपन की देन है। और जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि इस अवस्था मे व्यक्ति का अवचेतन मन अधिक सक्रीय होता है और इसी अवचेतन मन को जब नकारत्मक दिशा मे मोड़ा जाता है तो यह विध्वंस करता है और जब इसे सकारात्मक दिशा दी जाती है तो यह सृजन करता है । यही कलाकार जब अपनी रचना का सृजन करता है तो वह नितांत अकेला होता है। इसीलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि हर परिस्थिति का एक सकारात्मक पक्ष होता है जो कि उसके नकारात्मक पक्ष से कही अधिक सबल होता है परंतु उसको जीवन में उतारना उतना ही असाध्य भी होता है। इसी लिए साधना की आवश्यक्ता पड़ती है। हमें चाहिए कि हम अपने जीवन की हर परिस्थिति का एक सकारात्मक पहलू खोज कर उसका अधिकतम उपयोग करें।

« Previous entries