Archive for अक्टूबर 4, 2007

रात भर

गिन गिन कर तारे मैने बिताई रात भर।
आँखों मे मेरी नींद न आई रात भर।

सुबह उठ कर देखा तो रंगीन ख्वाब थे,
ख्वाबो में तेरी तस्वीर यूं बनाई रात भर।

जिसने झलक दिखाई इक और छिप गई,
यह दिल उसे देता रहा दुहाई रात भर।

कब हुई सुबह हमें यह भी पता न था,
तेरी याद बनकर नशा छाई रात भर।

एक दिल जले के साथ लगा दिल कुछ इस कदर,
उसकी सुनी अपनी उसे सुनाई रात भर।

« Previous entries