होटल के प्रांगण में
चल रहा था जश्न
झूम रहे थे लोग
लिये डांडिया की स्टिक हांथों में,
गहरी लिपस्टिक लगे हुए होठों पर
फैली थी मुस्कान।
डस्टबिन में पड़ी हुई थीं
बहुत सारी आधी खाई हुई प्लेटें,
यही होती है समृद्धि की पहचान।
लोग खुश थे,
निश्चिंत थे।
मगर होटल के बाहर
बैठा है एक वृद्ध
इस आस मे
कि पड़ेगी किसी
समृद्ध की नज़र
इस पर
और वह
डालेगा कुछ चिल्लर
इसके कटोरे में।
जिस से वह खरीदेगा कुछ आटा
और भरेगा पेट अपनी बीवी
और तीन बच्चों का।
नहीं तो आज फिर होगा उपवास
नवरात्री के पर्व पर
माता का नाम लेकर।