रातभर कोई भौंरा मचलता है
तब जाकर फूल कोई खिलता है
तुम्हें क्या मालूम अहमियत भूख की,
एक रोटी के लिए तवा घंटों जलता है
ज़िंदगी क्या है हमसे पूछो,
जब से पैदा हुए हैं- बस चलता है
ख्वाहिशें आदमी की पहुँचने लगीं फलक तक,
हर रोज़ एक तारा कम निकलता है
मुसाफिर हूँ मैं मेरा ठिकाना न पूछ,
हर शाम मेरा ठिकाना बदलता है
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हर शाम मेरा ठिकाना बदलता है