Archive for गीत एवं गज़ल

हर शाम मेरा ठिकाना बदलता है

रातभर कोई भौंरा मचलता है
तब जाकर फूल कोई खिलता है

तुम्हें क्या मालूम अहमियत भूख की,
एक रोटी के लिए तवा घंटों जलता है

ज़िंदगी क्या है हमसे पूछो,
जब से पैदा हुए हैं- बस चलता है

ख्वाहिशें आदमी की पहुँचने लगीं फलक तक,
हर रोज़ एक तारा कम निकलता है

मुसाफिर हूँ मैं मेरा ठिकाना न पूछ,
हर शाम मेरा ठिकाना बदलता है

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