Archive for गीत एवं गज़ल

तन्हा रातें

तुम क्या जानो कि कैसे डसती हैं तन्हा रातें।

हम पर हर रोज़ ही हंसती हैं तन्हा रातें।

कौन कहता है कि हर चीज़ यहां महगी है,

यहां तो धूल से भी सस्ती है तन्हा रातें।

दिन तो कट जाते हैं जैसे तैसे,

बन कर के आग बरसतीं हैं तन्हा रातें।

कहीं नहीं है यहां प्यार अम्न की खुश्बू,

डर-औ-दहशत की बस्ती है यहां तन्हा रातें।

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